भाजपा की सरकार है तो सब कुछ ऐतिहासिक- सुरेन्द्र

भाजपा की सरकार है तो सब कुछ ऐतिहासिक होता है। केंद्र से लेकर राज्यों ने इतने इतिहास दर्ज कर दिए कि यदि उन्हें किताबों में समेटना शुरू करोगे तो पहली क्लास से लेकर ग्रेजुएट तक की किताबें भर जाएंगी। चाहे कोरोनाकाल हो, तब भी इतिहास लिखा गया। पहले ताली और थाली बजाकर कोरोना को भगाने का प्रयास हुआ। अचनाक लॉकडाउन की घोषणा कर लोगों को सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया गया। फिर ऑक्सीजन की कमी, बेंटिलेटर की कमी, आइसीयू की कमी के चलते लोग तड़पते रहे। टीकाकरण का मुद्दा भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो तब जाकर लोगों को फ्री में टीके लगे। फिर ताली बजने लगी। कोरोना से मरने वालों को 50 हजार रुपये का मुआवजा भी तब तय हुआ जब सुप्रीम कोर्ट तक ये मामला पहुंचा। ये बात भी एक इतिहास में दर्ज हो गई कि बगैर सुप्रीम कोर्ट का सहारा लिए कोई भी काम देश में बनता नहीं दिखा।
इतिहास तो लखीमपुर खीरी में भी लिखा गया। जब राज्यमंत्री के बेटे की जीप से किसानों को कुचल दिया गया। इससे पहले भी नोटबंदी कर आंतकवाद की कमर तोड़ने का इतिहास लिखा गया। लोग लाइन में खड़े रहे। भटकते रहे। ना तो आतंकवाद ही खत्म हुआ और न ही ब्लैकमनी वापस आया। पहले साल तो नोटबंदी की सालगिरह जरूर मनाई गई, फिर इस इतिहास को भी छिपा दिया गया। शाहीनबाग में चला लंबा आंदोलन भी एक इतिहास रहा। जिसे सांप्रदायिक रंग देने के प्रयास होते रहे और बाद में सफल भी हुए। फिर भी आंदोलन की जो चिंगारी वहां से फूटी उसका नतीजा ये निकला कि किसान आंदोलन ने भी इतिहास लिख दिया और सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। ये भी इतिहास में दर्ज हो गया कि वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक 126 करोड़ देश की आबादी है। इनमें से 80 करोड़ लोग गरीब हो गए। यदि गरीब नहीं हैं तो वे मोदी झोला लेकर मुफ्त में राशन लेने के लिए राशन की दुकानों में नहीं जाते। अब हम उत्तराखंड के इतिहासों के बारे में बताते हैं।
उत्तराखंड राज्य में साढ़े चार साल में सीएम के चेहरे के रुप में तीन चेहरे देकर इतिहास लिखा गया। गैरसैंण में सड़क की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रही घाट क्षेत्र की महिलाओं पर लाठी चलाकर इतिहास लिखा गया। देवस्थानम बोर्ड का गठन कर इतिहास लिखा गया। फिर तीर्थ पुरोहितों के विरोध में आना भी इतिहास में दर्ज हो गया। वहां अब भी आंदोलन चल रहा है। इसमें भी एक इतिहास ये है कि बोर्ड का गठन कर रहे तीर्थ पुरोहितों ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को केदारनाथ धाम में दर्शन करने ही नहीं दिए और विरोध के चलते उन्हें वापस लौटना पड़ा। अब एक नया इतिहास दर्ज करने की बात हो रही है। ये है उत्तराखंड और यूपी के बीच परिसंपत्तियों का बंटवारा। हालांकि इससे पहले पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत दोनों भी इस मुद्दे में इतिहास दर्ज कर चुके हैं। तीरथ सिंह रावत ने तो उटपटांग बयानबाजी का भी इतिहास दर्ज किया। इससे उत्तराखंड पूरे देशभर में चर्चा में आ गया।

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